स्रीयो के उत्थान हेतू सामजिक जागृती जरुरी- गीताली मंदाकिनी
स्रीयो के उत्थान हेतू सामजिक जागृती जरुरी- गीताली मंदाकिनी
बाबूजी देशमुख वाचनालय के व्याख्यानमाला का आज समापन
अकोला- संयुक्त राष्ट्र संघ ने 8 मार्च यह दिन अंतरराष्ट्रीय महिला दिन घोषित कर महिलाओ को पुरुषो के समान अधिकार प्रदान किये.पचास वर्ष के इस दीर्घ कालखंड मे स्त्री -पुरुषो मे समानता आयी क्या ? यह प्रथम देखना महत्त्वपूर्ण हैं.इस पुरुष प्रधान संस्कृती मे स्त्री पुरुषो सें कनिष्ट एवं भिन्न थी.मात्र संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्व अनादी काल सें भारतीय संस्कृती मे स्त्री व पुरुष यह समान होकर स्त्रियो को भी आदमी समान दर्जा समाज ने देना चाहीये इस हेतू अनेक समाज सुधारको ने अथक प्रयास किये हैं.इसी कारण वह इन पचास वर्षो मे पुरुषो के बराबर आकर उसके अधिक स्वालंबन व उत्थान हेतू पुरुषी अहंभाव की कैची मुक्त होना चाहीये ऐसी मंशा व्याख्याता गीताली वि.मंदाकिनी ने व्यक्त की.बाबूजी देशमुख वाचनालय की ओरसे स्थानीय प्रमिलाताई ओक हॉल मे चल रहे नवरात्र व्याख्यानमाला मे पुणे निवासी गीताली मंदाकिनी ने "कैची मे अटके पुरुष"इस विषयपर मराठी मे व्याख्यान का आठवा पुष्प पिरोया.उन्होने कहा,स्त्रीपन एवं पुरुषपन इस संदर्भ मे समाज के कुछ नियम एवं संकेत हैं.इन नियमोपर स्त्री और पुरुष ने चलना चाहीये ऐसी अपेक्षा परंपरा के चक्र मे चल रहे समाज की हैं.इसी कारण संस्कृती मे स्त्री को कनिष्ठ एवं पुरुष को श्रेष्ठ माना गया हैं.पुरुषी मानसिकता भी खुद ही मालक होने की रही हैं.इस पुरुषो के साचे मे पुरुष रो नही सकता,वह डर नही सकता,उसने नोकरी कर संसार चलाना चाहीये,परिवार का पालन पोषण करना चाहीये, जग व्यवहार करना चाहीये.ऐसा साचा समाज ने पुरुषो को दिया हैं.दुसरी ओर स्त्री ने पुरुषो का लाड प्यार करना चाहीये,घर का कामकाजू,कुटुंब का पालन,घरगृहस्थी करना चाहीये.
ऐसी परंपरा इस संदर्भ मे अनवरत चल रही हैं.इतना ही नही, घर के लंडके को सब दिया जाता हैं,जबकी लडकी को सब प्राप्त करना पडता हैं.पत्नी किसी के लिये नही रहना चाहीये इसलिये पुरुषी संशय दूर करने हेतू विवाह संस्था का निर्माण किया गया.किंतु इस विवाह संस्थापर भी वर्चस्व पुरुष संस्कृती का ही रहा हैं कुटुंबप्रमुख के रूप मे पहचान पुरुष की ही रहती हैं.इस संदर्भ मे स्त्री को याद नही किया जाता हैं.उन्होने आगे कहा,सफल व्यक्ती के पिछे स्त्री होती हैं,किंतु सफल स्त्री के पिछे कोई भी पुरुष पूर्णरूप सें नजर नही आता. बलात्कार होने पर स्त्रियो को शरम लगती हैं,किंतु पुरुषो को शरम नही आती.इसलिये राष्ट्र मे हो रहे बलात्कारो के संदर्भ मे सभी ने लैंगिकता को समझना जरुरी होने का प्रतिपादन गीताली मंदाकिनी ने किया. स्त्री के विविध विषय प्रतिपादित करते हुये गीताली मंदाकिनी ने स्त्री-पुरुष मैत्रीपर विचार व्यक्त किये.उन्होंने कहा,निर्लेप एवं निरपेक्ष मैत्रीभाव यह दोनो की जरूरत हैं.इसमे भी पुरुषो की बडी मुश्कील हुयी हैं, तथापि लैंगिक सुख की कल्पना पुरुष और स्त्रीयो की भिन्न प्रकार की होती हैं.विगत 50 वर्ष सें महिला लैंगिक सुख के संदर्भ मे जागरूक होकर सचेत हुयी हैं.वह अब निःसंकोच दिलखुलास बात करने लगी हैं.पतीने कही भी जाना,कोई भी महिला सें अफेयर रखना लेकिन पत्नी ने स्थायी रूप सें पतिव्रता रहकर पतिधर्म का पालन करना यह धारणा पुरुष संस्कृती की रहती हैं.यह सांस्कृतिक ही नही वरन सामजिक अधःपतन हैं.समर्पण केवल स्त्री ने ही करना क्या ? ऐसा सवाल उन्होंने इस समय उपस्थित किया. महिलाओ ने अपना,अपने माता का नाम अपने नामावली मे लगाने का आवाहन उन्होने किया.।आधुनिक डिजिटल व वैज्ञानिक युग मे स्त्रीशक्ती जागृत हुयी हैं. अनेक स्त्री संघटन,शासन, कानून महिलाओ के पिछे खडे हैं. पुरुषी वर्चस्व की लढाई अब धिरे धिरे खत्म हो रही हैं.स्त्रीने खुले दिल सें जग के सामने आकर अपना वर्चस्व सिध्द करने का आवाहन गीताली मंदाकिनी ने इस समय किया.सत्र प्रारंभ पर सर्वप्रथम बाबूजी देशमुख वाचनालय के अध्यक्ष माधवराव भुईभार, सचिव अनुराग मिश्र की उपस्थिती मे व्याख्यानकार गीताली मंदाकिनी का स्वागत हुवा. वक्ता परिचय जेष्ठ कविवर्य नारायण कुलकर्णी कवठेकर ने दिया. आभार सचिव अनुराग मिश्र ने माने.व्याख्यानमाला मे आज दि 22 अकटुंबर को बेळगांव के दिलीप कामत "विकास नही, विनाश रोको" इस विषयपर अंतिम व्याख्यान प्रस्तुत करेंगे.इस समापन सत्र का लाभ लेने का आवाहन वाचनालय के अध्यक्ष महादेवराव भुईभार, सचिव अनुराग मिश्र समेत सभी कार्यकारिणीने किया.