आदर्श विवाहा वक्त की ज़रूरत, दहेज लेना और देना दोनों हराम- मुफ्ती अशफ़ाक क़ासमी



(साजिद खान)

हतरून- देश मे गिरते समाजिक स्तर को उबारने के लिए आदर्श विवाहा वक्त की ज़रूरत है. अकोला शहर से करीब हारून ग्राम पंचायत में जमात-ए-इस्लामी हिंद हतरून द्वारा अयोजित खिताब-ए-आम को संबोधित करते हुए मुफ्ती अशफ़ाक क़ासमी साहब ने ये बात कही।
आज देश मे दिन-ब-दिन बिगड़ते सामाजिक और आर्थिक हालात से निपटने के लिए मुस्लिम युवाओं को चहिए के दहेज की लानत से बाहर निकले निकाह को आसान बनाए शादी की हिंदुवाना रस्म-व-रिवाज से किनारा करें फुज़ुल खर्ची से बचे निकाह को आसान बनाए. आज के युवाओं मे बड़ों का आदर-व-एहतेराम खत्म हो चुका है. बेटा बाप की नही सुनता, भाई भाई की बात नहीं मानता और बेटी मां से दो कदम आगे चलने को अपना स्वाभिमान समझती है ये सारी समाजिक बुराइयां हमारी अपनी पैदा की हुई है. हम ने कभी आपने बच्चों और परिवार पर ध्यान ही नही दिया. हम सिर्फ कमाने के पीछे लगे रहे. आज हर शख्स एक का दो और दो के चार करने मे लगा है. आज हर आदमी सोचता है उसका बेटा बडा हो कर खूब पैसा कमाए अच्छी नौकरी और व्यवसाय करे. लेकीन कोई भी ये नही सोचता के उसका बेटा नेक इंसान और अच्छा नागरिक बने. हर कोई अपनी औलाद को पैसा कमाने की मशीन बनाना चाहता है मगर सभ्य इंसान बनना नही चाहता।



आज का युवा अंग्रेज़ी शिक्षा से पैसा तो खूब कमाने लगा है लेकीन समाजिक बुराइयों का शकार होता जा रहा है. समाजिक और परिवारीक रिश्तों से दूर होता जा रहा है. क्या पुरुष क्या महिलाएं सब एक जैसे. महिलाएं महीला पर ज़ुल्म करने से बाज़ नहीं आती कभी सास बहू पर तो कभी बहू सास को निशाना बनाती है. आज शादी के बाद घर मे आने वाली बहु से ये अपेक्षा की जाती है के वो आते ही घर का सारा काम संभाल ले झाड़ू पोछा से लेकर खाना बनाना सब उसी ने करना है जैसे बहु नही कोई नौकरानी लेकर आए हैं. सुनलें महिलाएं और पुरुष भी बहु कोई नौकरानी नही है बल्कि वो खानदान की इज्ज़त है. मर्द घर में बीवी से कहता है घर का काम कर रही है तो कोई एहसान नहीं कर रही है. हां ये औरतें जो हमारे घरों में अपनी खिदमतें अंजाम दे रही है ये उनका हम पर एहसान हि है. हम ने उन्हें नौकरानी नही बीवी घर की बहु समझना चाहिए. संभालो अपने आप को और अपने घर खानदान को उनके लिए थोड़ा वक्त निकालए पैसा कमाने की मशीन मत बनऐ. हुकुक-उल-इबाद का ध्यान रखें मोमिन वो है जिस की ज़बान से उसका पड़ोसी महफूज़ रहे।आज हर मां बाप और पैरेंट्स ये समझते है के उन्होंने बच्चों को अच्छी स्कूल और मदरसे मे दाखला दिला कर उनका काम खत्म हो गया अब बच्चों को अच्छी शिक्षा और सामाजिक सभ्यता भी वहीं से मिलेंगी ये सारा काम शिक्षक और मौलवी का है. नही. ये काम आप का है बच्चा आप ने पैदा किया है उसे अच्छा इनसान सभ्य नागरिक बनाना आप का काम है स्कूल कॉलेजों और मदरसों से सर्फ शिक्षा प्राप्त होगी सामाजिक सभ्यता तो आप की ज़िम्मेदारी है।इस अवसर पर मुफ्ती फैज़ उल हसन कासमी साहब ने आदर्श युवा इस विषय पर अपने विचार प्रकट किए आपने कहा दुनिया में जितनी भी क्रांतियां आई है उन सब की शुरुवात युवाओं से हुई है. आज युवाओं पर एक बडी ज़िम्मेदारी है युवा मोबाइल, चौराहों और होटलों पर वक्त गुज़ारने की बजाए आपने घर परिवार और सामाजिक सुधार की ओर ध्यान दें।कार्यक्रम की शुरुवात मौलाना नईम रज़ा साहब ने कुराने पाक कि आयत से की. इस अवसर पर मौलवी मुकीम साहब, नासिब खान ईमाम साहब, साजिद अली ईमाम साहब, एहेफाज़ खान साहब के आलावा बडी संख्या में उलमा और आम नागरिकों के साथ साथ महिलाएं भी उपस्थित थीं. कार्यक्रम की सफलता के लिए जमात ए इस्लामी हिंद हतरून के ज़िम्मेदारों और कार्यकर्ताओं ने अथक परिश्रम किया!

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