२०११ अकोला दंगा प्रकरण: सबूतों के अभाव में सभी आरोपी बरी
45 आरोपियों की ओर से अधिवक्ता नजीब शेख की प्रभावी पैरवी
अकोला-साल २०११ में कारंजा निवासी एक युवक द्वारा फेसबुक पर पैगंबर मोहम्मद साहब के खिलाफ विवादित पोस्ट प्रकाशित किए जाने के बाद अकोला शहर सहित महाराष्ट्र भर में विरोध प्रदर्शन हुए थे। इसी घटना के विरोध में कुछ सामाजिक संगठनों द्वारा प्रदर्शन किया गया, जिसके बाद मुस्लिम नुमाइंदा काउंसिल की ओर से 28 नवंबर २०११ को बंद का आयोजन किया गया था।
इसी बंद के दौरान तिलक रोड स्थित मुख्य बाजारपेठ में लूटपाट, मारपीट, वाहनों की तोड़फोड़ और घोषणा बाज़ी किए जाने का आरोप लगाते हुए सिटी कोतवाली पुलिस स्टेशन के तत्कालीन पुलिस निरीक्षक विलास पाटिल ने मामला दर्ज कराया था। पुलिस ने इस प्रकरण में कुल 59 लोगों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धाराएं 397, 395, 394, 143, 147, 148, 149, 323, 324, 336, 337, 427, 120(ब) सहित सार्वजनिक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम, क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट एक्ट तथा मुंबई पुलिस अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत अपराध दर्ज कर आरोपियों को गिरफ्तार किया था।मामले में चार्जशीट दाखिल होने के बाद इसकी सुनवाई प्रथम जिला एवं सत्र न्यायालय, अकोला में विद्यमान न्यायाधीश ए. एस. श्रीसागर की अदालत में हुई। अदालत ने शिकायतकर्ता व जांच अधिकारी की भूमिका निभाने वाले तत्कालीन पुलिस निरीक्षक विलास पाटिल सहित कुल पांच गवाहों के बयान दर्ज किए।लंबी सुनवाई के बाद पर्याप्त व ठोस सबूत पेश न किए जाने के कारण अदालत ने सभी आरोपियों को निर्दोष मानते हुए बरी करने का आदेश पारित किया।इस प्रकरण में 45 आरोपियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता नजीब शेख ने प्रभावी पैरवी की। उन्हें अधिवक्ता शिबा मलिक, अधिवक्ता सोहराब जागीरदार तथा अधिवक्ता सैयद अरबाज़ का सहयोग प्राप्त हुआ। वहीं, सामाजिक संस्था वाहदत-ए-इस्लामी हिंद की ओर से गरीब व मजदूर वर्ग के आरोपियों को न्यायिक सहायता उपलब्ध कराई गई।
